रविवार, 19 सितंबर 2010

अकेली माँ भारती व्यथा सह रही है ||

 अँधेरे  के सौदागर करते हैं 
जहाँ रोशनी की तिजारत ,
डाकू और लुटेरे रखवाले हैं |
वहां क्या दुखड़ा रोना रोज -रोज व्यवस्था का 
देश ही समूचा जब नियति के हवाले है |
अब यहाँ कोई बीमारी से नहीं 
भूख से या फिर हादसों में बेमौत मरते हैं |
जानवरों से तो उनकी दोस्ती है 
वे सिर्फ आम आदमी से डरते हैं |
वैसे तो सब कुछ ठीक -ठाक है ,
महज गंगा उलटी बह रही है |
वे तो मालामाल और खुशहाल हैं ,
अकेली माँ भारती व्यथा सह रही है ||    

8 टिप्‍पणियां:

  1. "वे तो मालामाल और खुशहाल हैं,
    अकेली माँ भारती व्यथा सह रही है"

    सच्ची और सटीक प्रस्तुति

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  2. अँधेरे के सौदागर करते हैं
    जहाँ रोशनी की तिजारत ,
    डाकू और लुटेरे रखवाले हैं |
    वहां क्या दुखड़ा रोना रोज -रोज व्यवस्था का
    देश ही समूचा जब नियति के हवाले है |
    बहुत खूब...........

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  3. वे तो मालामाल और खुशहाल हैं ,
    अकेली माँ भारती व्यथा सह रही है ||

    ‌‌‌बहुत ही शानदार ​लिखा है आपने। बधाई
    http://www.tikhatadka.blogspot.com/

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति ,शुभ कामनाएं । कुछ हट कर खबरों को पढ़ना चाहें तो जरूर पढ़े - " "खबरों की दुनियाँ"


    "

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  5. हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. बहुत सुन्दर जय माँ भारती

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