बदलेगा फिर बोलो कैसे गीतों,कविताओं से / /
जो गिरवी रखकर कलम ,जोड़ते दौलत से यारी/
वे खाक करेंगे आम आदमी की पहरेदारी / /
जब तक शब्दों के साथ कर्म का योग नहीं होता/
थोथे शब्दों का तब तक कुछ उपयोग नहीं होता// .
व्यवहारपूत हर शब्द मंत्र जैसा फल देता है /
इसलिए हमारा शास्त्र आचरण पर बल देता है//
जब शब्दों के अनुरूप व्यक्ति के कार्य नहीं होते/
उनके उपदेश आम जन को स्वीकार्य नहीं होते//
हल और कुदाल,हथोड़ों से लिखते हैं जो साहित्य/
उनमें होता अभिव्यक्त हमारे जीवन का लालित्य//
थोथी चर्चा,सेमिनारों से कुछ न प्राप्त होगा /
भैरव श्रम से ही दैन्य भारती का समाप्त होगा//
बदलेगा तभी समाज आचरण का प्राधान्य हो जब/
"श्रम जीवन का आधार बने"यह मूल्य मान्य हो जब//
सटीक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे भाव हैं कविता के ..
जवाब देंहटाएंसच कहा , मूल्यों के बिना सब व्यर्थ है , आप और हम अपना अपना काम करते रहें , उम्मीद जरुर रखें ...
जवाब देंहटाएं"हल और कुदाल,हथोड़ों से लिखते हैं जो साहित्य/
जवाब देंहटाएंउनमें होता अभिव्यक्त हमारे जीवन का लालित्य//"
बेहद खूबसूरत पंक्तियां. श्रम सृजन का उदगमस्थली है जो हमारी जिंदगियों में नए नए अर्थों का संसार रच देता है. आभार.
सादर
डोरोथी.