रविवार, 26 सितंबर 2010

जब बदला नहीं समाज ....

जब बदला नहीं समाज,राम की चरित कथाओं से /
बदलेगा फिर बोलो कैसे गीतों,कविताओं से   / /
जो गिरवी रखकर कलम ,जोड़ते दौलत से यारी/
वे खाक करेंगे आम आदमी की पहरेदारी  / /
जब तक शब्दों के साथ कर्म का योग नहीं होता/
थोथे शब्दों का तब तक कुछ उपयोग नहीं होता//            .
व्यवहारपूत हर शब्द मंत्र जैसा फल देता है /
इसलिए हमारा शास्त्र आचरण पर बल देता है//
जब शब्दों के अनुरूप व्यक्ति के कार्य नहीं होते/
उनके उपदेश आम जन को स्वीकार्य नहीं होते//
हल और कुदाल,हथोड़ों से लिखते हैं जो साहित्य/
उनमें होता अभिव्यक्त हमारे जीवन का लालित्य//
थोथी चर्चा,सेमिनारों से कुछ न प्राप्त होगा /
भैरव श्रम से ही दैन्य भारती का समाप्त होगा//
बदलेगा तभी समाज आचरण का प्राधान्य हो जब/
"श्रम जीवन का आधार बने"यह मूल्य मान्य हो जब//