जब आँतें कुलबुला रही हों ,
कंठ प्यासा हो ,
मन विकल और उदास हो ।
और चिथड़ों में लिपटी ज़िंदगियों की
एक पूरी जमात आसपास हो ।
तब होली पर यही कामना है
कि कुछ रोटियाँ ,थोड़ा-सा पीने लायक पानी और ठीक से पहने जाने लायक कपड़े जुट सकें ताकि इन बदरंग ज़िंदगियों में रंग लौट आए और 'होली' 'होती हुई' लगे ॥
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