सोमवार, 25 जुलाई 2011

संदेश

अपनेपन का पड़ा आज दुष्काल
डँस लेते अपने ही बनकर व्याल/
करते एक दूसरे सब द्वेष
प्रेम और विश्वास हुआ निःशेष /
दुरभिसंधियों का फैला है जाल
बढ़ा घात-प्रतिघात यहाँ विकराल/
फिर भी चिंता नहीं किसी को लेश
कहाँ जा रहा है अपना यह देश /
है यही आज का यह संदेष विशेष
यों मत पीछे की ओर धकेलो देश//

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

धरती के बेटे

तुम साकार आस्था हो,अभिनंदनीय हो
धरती के बेटे किसान तुम वंदनीय हो/
बीज नहीं तुम खेतों में जीवन बोए हो
भैरव श्रम से कभी नहीं विचलित होते हो/
वज्र कठोर,पुष्प से कोमल हो स्वभाव से
हंसकर विष भी पी जाते हो सहज भाव से/
तुमने इस जग पर कितना उपकार किया है
बीहड़ बंजर धरती का श्रृंगार किया है/
हरियाली के स्वर में जब धरती गाती है
देख तुम्हारा सृजन प्रकृति भी इठलाती है/
अपर अन्नदाता का जिसको मिला मान है
निर्विवाद वह धरती का बेटा किसान है//

बुधवार, 9 मार्च 2011

होली

जब आँतें कुलबुला रही हों ,
कंठ प्यासा हो ,
मन विकल और उदास हो ।
और चिथड़ों में लिपटी ज़िंदगियों की
एक पूरी जमात आसपास हो ।
तब होली पर यही कामना है
कि कुछ रोटियाँ ,थोड़ा-सा पीने लायक पानी और ठीक से पहने जाने लायक कपड़े जुट सकें ताकि इन बदरंग ज़िंदगियों में रंग लौट आए और 'होली' 'होती हुई' लगे ॥