शनिवार, 11 सितंबर 2010

क्या झूठा आशावाद सभी प्रश्नों का हल होगा ?

एक घूंट मट्ठे को बचपन यहाँ तरसता है
आमआदमी की हालत तो बिलकुल खस्ता है
अब मंदिर ,मस्जिद में ही भैरव युद्ध ठन रहा है
यह देश समूचा षड्यंत्रों का केंद्र बन रहा है
अब तुम्ही बताओ प्रभु भला क्या समाधान होगा
हा !कितना और रक्तरंजित विधि का विधान होगा
भले लोग दायित्वों से घबरा कर भागे हैं
राजनीति में अपराधी ही सबसे आगे हैं
रूपया ,रूपवती की घर-घर चर्चा होती है
अच्छाई मारी-मारी फिरती है रोती है
अब असत और सत दोनों में किसका प्राधान्य होगा
बतलाओ हे भगवान कौन-सा मूल्य मान्य होगा
नैतिक मूल्यों का अधपतन अब कितना और बढे
जब भगिनी गलत संबंधों का भाई पर दोष मढ़े
सदाचरण तो अब केवल ग्रंथों में चर्चित है
परहित साधन की चर्चा करना भी वर्जित है
इस दुरवस्था के चलते कैसे स्वर्णिम कल होगा ?
क्या झूठा आशावाद सभी प्रश्नों का हल होगा ???

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