मर्दों की शतरंजी दुनिया
मर्द जंहा पर बादशाह है
औरत महज एक प्यादा है,
ये तो केवल आधा सच है
पूरा सच इससे ज्यादा है ,
मर्दों की बीमार नजर में
औरत सिर्फ एक मादा है !
बेजुवान मिटटी की गुड़िया
बन जीना जिसकी लाचारी |
खटते रहना ,करते रहना
चूल्हा चक्की और बुहारी |
बच्चे जानना ,वंश बढ़ाना
उन्नति के सोपान चढ़ाना
बोझिल कर्तव्यों का बोझा
जिस पर मिल सबने लादा है|
फिर भी मर्दों ने औरत को
मान रखा केवल मादा है|
जीवन के सागर मंथन में
जिसकी है भूमिका अग्रणी |
मातृशक्ति की मानवता यह
इसीलिये तो हुई चिर ऋणी|
जो विष अमृत अलग छांटती
सुधा सभी के बीच बांटती
हालाहल को खुद पीती है ,
मर-मर कर हर दिन जीती है |
फिर कैसे वह हुई बुरी है ,
जीवन की जो मूल धुरी है ||
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