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रविवार, 12 सितंबर 2010

बोलो क्या माने रखता है उनका जीना

ऊँचे महलों ने जिनको हर बार छला  हो ,
जिन्हें झोंपड़ी में रहने का शाप फला हो |
कमर तोड़ मेहनत करके जो भूखे रहते ,
भोले और भले होकर भी जिल्लत सहते |
मुखिया के घर जिनका गिरवी रखा पसीना ,
बोलो क्या माने रखता है उनका जीना  |
खाट बेचकर खुद जमीन पर जो सोते हों ,
एक घूंट मट्ठे को जिनके शिशु रोते हों |
बचपन में ही जिनकी मधु मुस्कान खो गई ,
जिनकी मंगनी बेकारी के साथ हो गई  |
हुआ बेकशी से हो जिनका छलनी सीना ,
बोलो क्या माने रखता है उनका जीना  |
जो जुबान के रहते अपने होंठ सियें हैं ,
जिसने जाने कितने कडुवे घूंट पिये हैं ,
सूरज होकर निपट अँधेरे में रहते जो ,
मन ही मन में जीने की पीड़ा सहते जो ,
जिन्हें रोज विष का प्याला पड़ता हो पीना |
बोलो क्या माने रखता है उनका जीना   ||