गुरुवार, 9 सितंबर 2010

कविता का सृजन .

जब अनुभूतियों के बबंडर उठते हैं
उमड़ता है भावनाओं का ज्वार, मन के समुद्र में
कल्पना की हठीली लहरें मचलती हैं
करने आलिंगन अनंत आकाश का
और छोटा पड़ जाता है मन का आँगन
भाव विलास के लिए
तब शब्दों के धरातल पर थिरकता है मन
उस क्षण होता है किसी संजीविनी कविता का  सृजन .

कविता जिन्दा होने का अहसास है

कविता
मेहनतकश की बुझी हुई आँखों की चमक है
अपनेपन की भीनी - भीनी महक है
कविता
अँधेरे में टिमटिमाते दीये का होसला है
उठ खड़े होने का आह्वान है
काली रात के बीत जाने का ऐलान  है !
कविता
सूरज के धरती पर आने की मुनादी है
जाड़ों में ,गुनगुनी धूप में, उन्मुक्त  टहलने की आजादी है!
कविता
इंसानियत के तिल -तिल मरने की गवाही है
खून से लिखे दुनिया के इतिहास की अमिट स्याही है
कविता उमंग है ,चाहत है , कड़ी भूख प्यास है
कविता जिन्दा होने का अहसास है .

बुधवार, 8 सितंबर 2010

नंदन वन

यों है कहने को नंदन वन
पल्लवित वृक्ष दो चार 
शेष भूखे नंगे बच्चों से क्षुप 
श्रीहीन दीन बालाओं- सी 
मुरझाईं  बेलें भी हैं कुछ 
जिस ओर विहंग दृष्टि डालें 
अधसूखे ठूठ हजार खड़े 
उपवन उद्यान कहो कुछ भी 
दर्शन थोड़े बस नाम बड़े 
यों है कहने को नंदन वन